इस बार राष्ट्रभाषा हिन्दी को पुष्पान्जली!!
भभकते हुए अग्निकुंड की तेजोमय ज्वाला है तू,
रो मत, गांडीव लिए खड़े अर्जुन की हुंकार है तू।
रोटी कपडा मकान में उलझी हीनता तेरा परिचय नहीं,
भानु की आभाशक्ति वाली परब्रम्ह की संतान है तू।
वित्त, व्यव्हार और वासना में राचना तेरा परिणाम नहीं,
विपरीत जलधारा को भेदने वाली शौर्यगाथा है तू।
परिश्थितिवश निर्णय और आपत्तिओका डर तेरी शोभा नहीं,
तपस्विता और तेजस्विता का खुमारीपूर्ण साहित्य है तू।
अतिभावना या अतिजड़ता का सामान्यत्व तेरी पहचान नहीं,
अहम ब्रम्हास्मि की गर्जना करती निराकार की छवि है तू।
सत्ता, समृद्धि और कीर्ति तेरे शौर्य के मापदंड नहीं,
मोहक भी हे, दाहक भी हे तु, भटके हुए जग की ‘रौनक’ है तू।
ली. रोनक रायठठा